
21 साल बंद खुले मंदिर के कपाट, नक्सलियों के फरमान से दो दशकों तक बंद रहा राम मंदिर
April 7, 2025
सुकमा। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र लखापाल-केरलापेंदा गांव में स्थित राम मंदिर को नक्सलियों के आदेश के बाद वर्ष 2003 से बंद कर दिया गया था। 21 वर्षों बाद, सीआरपीएफ की तैनाती और सुरक्षा बलों की पहल पर मंदिर के कपाट राम नवमी के शुभ अवसर पर फिर से खोले गए। ग्रामीणों ने भव्य पूजा-अर्चना और भंडारे का आयोजन कर उल्लासपूर्वक पर्व मनाया।
एक ओर जहां अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का पांच सौ वर्षों का लंबा इंतजार हाल ही में खत्म हुआ, वहीं छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां श्रद्धालुओं को राम मंदिर के कपाट खुलने के लिए 21 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। यह मामला सुकमा के लखापाल और केरलापेंदा गांव से जुड़ा है, जो लंबे समय से नक्सल प्रभावित इलाका रहा है। वर्ष 2003 में नक्सलियों ने अपने फरमान के जरिए गांव के राम मंदिर में पूजा-पाठ पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद मंदिर के दरवाजे पूरी तरह बंद कर दिए गए थे।
करीब पांच दशक पहले इस मंदिर का निर्माण कराया गया था और इसमें भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की संगमरमर से बनी मूर्तियों की स्थापना की गई थी। यह मंदिर ग्रामीणों की आस्था का प्रमुख केंद्र था, लेकिन नक्सल गतिविधियों के बढ़ते दबाव के चलते 2003 में इसे बंद करना पड़ा। ग्रामीण डर के साये में जीवन बिताने को मजबूर हो गए और धार्मिक गतिविधियाँ पूरी तरह ठप हो गईं।
एक ओर जहां अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का पांच सौ वर्षों का लंबा इंतजार हाल ही में खत्म हुआ, वहीं छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां श्रद्धालुओं को राम मंदिर के कपाट खुलने के लिए 21 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। यह मामला सुकमा के लखापाल और केरलापेंदा गांव से जुड़ा है, जो लंबे समय से नक्सल प्रभावित इलाका रहा है। वर्ष 2003 में नक्सलियों ने अपने फरमान के जरिए गांव के राम मंदिर में पूजा-पाठ पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद मंदिर के दरवाजे पूरी तरह बंद कर दिए गए थे।
करीब पांच दशक पहले इस मंदिर का निर्माण कराया गया था और इसमें भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी की संगमरमर से बनी मूर्तियों की स्थापना की गई थी। यह मंदिर ग्रामीणों की आस्था का प्रमुख केंद्र था, लेकिन नक्सल गतिविधियों के बढ़ते दबाव के चलते 2003 में इसे बंद करना पड़ा। ग्रामीण डर के साये में जीवन बिताने को मजबूर हो गए और धार्मिक गतिविधियाँ पूरी तरह ठप हो गईं।