
CG- हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, पत्नी के वर्जिनिटी टेस्ट की मांग, हाईकोर्ट ने कहा, नहीं दे सकते अनुमति, चाहो तो खुद की नपुंसकता की जांच
March 27, 2025
: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पत्नी के वर्जिनिटी टेस्ट की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह असंवैधानिक है और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ जाता है। यह मामला रायगढ़ जिले का है, जहां पति-पत्नी के बीच गंभीर पारिवारिक विवाद चल रहा था। कोर्ट ने इस तरह की मांग को अनुच्छेद 21 के तहत अस्वीकार्य बताते हुए याचिकाकर्ता पति को फटकार लगाई।
रायगढ़ जिले के एक दंपति के बीच लंबे समय से पारिवारिक विवाद चल रहा था। पत्नी ने भरण-पोषण के लिए अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने अपने पति को नपुंसक बताया था। वहीं, पति ने भी पत्नी पर चरित्र से जुड़े गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि उसकी पत्नी के अपने बहनोई के साथ अवैध संबंध हैं। इसी आधार पर पति ने कोर्ट से पत्नी के वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की थी। रायगढ़ के पारिवारिक न्यायालय में जुलाई 2024 को दर्ज मामले में पत्नी ने ₹20,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी। दोनों की शादी 30 अप्रैल 2023 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी, लेकिन जल्द ही संबंधों में दरार आ गई।
मामला हाईकोर्ट पहुंचने पर न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी महिला से वर्जिनिटी टेस्ट की मांग करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की जांच महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली होती है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है।
कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की पवित्रता को मापने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता और ऐसी मांगें केवल महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए की जाती हैं। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पति को यह भी चेतावनी दी कि वह इस तरह के अनुचित अनुरोधों के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न करे।
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा पर जोर
अदालत के इस फैसले को महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में नजीर बनेगा और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को मजबूत करेगा।
रायगढ़ जिले के एक दंपति के बीच लंबे समय से पारिवारिक विवाद चल रहा था। पत्नी ने भरण-पोषण के लिए अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने अपने पति को नपुंसक बताया था। वहीं, पति ने भी पत्नी पर चरित्र से जुड़े गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि उसकी पत्नी के अपने बहनोई के साथ अवैध संबंध हैं। इसी आधार पर पति ने कोर्ट से पत्नी के वर्जिनिटी टेस्ट की मांग की थी। रायगढ़ के पारिवारिक न्यायालय में जुलाई 2024 को दर्ज मामले में पत्नी ने ₹20,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी। दोनों की शादी 30 अप्रैल 2023 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी, लेकिन जल्द ही संबंधों में दरार आ गई।
मामला हाईकोर्ट पहुंचने पर न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी महिला से वर्जिनिटी टेस्ट की मांग करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की जांच महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली होती है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है।
कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की पवित्रता को मापने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता और ऐसी मांगें केवल महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए की जाती हैं। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पति को यह भी चेतावनी दी कि वह इस तरह के अनुचित अनुरोधों के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न करे।
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा पर जोर
अदालत के इस फैसले को महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में नजीर बनेगा और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को मजबूत करेगा।